आँसू



आँसू!

कहने को अपने ,पर सिर्फ अपने नहीं होते हैं,

अक्सर वक्त बेवक्त दगा दे जाते हैं,जब भरी महफ़िल चले आते हैं।

पर इनकी वफादारी पे शक जायज़ नहीं,

गर मन भारी हो ,

तो पलकों से झड़, मिटटी में मिल वफ़ा निभाते हैं।

 आदत है इनकी ,

गम ही नहीं खुशियों में भी बिन बुलाए ही आ जाते हैं,

बिन शब्दों की ज़ुबान हैं आँसू,बिन बोले बहुत कुछ कह जाते हैं।

आँसू जज़्बातों का सबूत हैं,

और ये जज़्बात ही इनका वजूद हैं।


एक अकेले की आँखों में कभी सुकून बन जाते हैं,

भीड़ की आँखों में आएँ तो जूनून बन जाते हैं।


कुछ कहते हैं थोड़े बेईमान भी होते हैं आँसू,

गरीब की आँखों में अक्सर,

तो अमीर की आँखों में कभी- कभी ही आते हैं।

मैंने तो देखा है,

 दोनों की आँखों में ये बराबर अपनी रागिनी गाते हैं।

पर एक अजीब सा चरित्र है आँसुओ का,

हर किसी की आँखों में अलग ही कहानी सुनाते हैं।


कभी दिल को तरावट दे जाते है,

तो कभी गर्व बन आँखों में चमचमाते हैं।

कभी दर्द बन आँखों में आ जाते हैं,

तो कभी गुस्सा बन बह जाते हैं।


अगर जानना है इनके बारे में ,

तो यादों से पूछो,गहरा रिश्ता है दोनों का,

यादों से आँसू टूट कर वफ़ा निभाते हैं।


बेवक़ूफ़ हैं वो लोग जो आँसुओ को कमज़ोर बताते हैं,

साक्षी है इतिहास ,

अत्याचार के जने ,जब निर्दोष की आँखों में आते हैं,

तो जिसका कोई तोड़ नहीं,ऐसा गरल बन जाते हैं,

कि जिसमे शहर के शहर जल जाते हैं।

 जब किसी की आँखों में बस ,

मातम में जाते हैं,तो शोक संगीत बन जाते हैं,

किसी दर्द से लड़ना हो तो साथ निभाते हैं।


जो कहते हैं आँसू महज़ खारा पानी हैं,

उन्हें ये बात बतानी है,

कि ठीक से मुलाकात नहीं हुई अभी हमारी,

कभी फुर्सत से आऊँगा ,

और तुम्हे भी अपने रंगों की दास्तान सुनाऊँगा।

यकीन मानो किसी न किसी रंग में तुम्हे अपना बना जाऊँगा।

पर याद रखना,

या तो तुझे बेबाक हँसाउंगा, या बेज़ार रुलाउंगा,

पर आखिर तक तेरा साथ निभाऊँगा।

तेरी आँखों का मोती बन जाऊँगा,

जहाँ तेरी जुबान साथ न देगी ,

वहाँ तेरी कहानी मैं सुनाऊँगा।


चलता हूँ ,

अभी नहीं ...कहा न फुर्सत से आऊंगा।।


       - प्रिंसी मिश्रा

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