वो 'तुम' का रिश्ता
हर कोई नहीं समझ सकता,
मेरा तुम्हारे साथ वो 'तुम' का रिश्ता,
मेरी छोटी से छोटी ख़ाहिश के लिए,
तुम्हारा अपनी हर छोटी-बड़ी ख़ाहिश को,
वो मुस्करा कर "फिर कभी" कह देना,
हर त्योहार मेरे लिए ढेर सारी खुशियाँ,
और अपने लिए कुछ भी न लेना,
चाहे जितनी भी ज़रूरत क्यों न हो,
मेरी ज़रूरतों के आगे अपनी जरूरतों को नज़रअंदाज़ कर देना,
हर किसी को नहीं मिलता ज़िन्दगी में ऐसा फरिश्ता,
हर कोई नहीं समझ सकता,
मेरा तुम्हारे साथ वो 'तुम' का रिश्ता।
मेरे कल के ख़ातिर,
तुम्हारा अपने आज को कुर्बान कर देना,
मेरी हथेलियों में नसीब की वो लकीर ढूंढना,
और फिर अपनी उंगली से एक नई लकीर गढ़ देना।
हर त्योहार मेरे लिए रंगों की तश्तरी सजा देना,
और मेरा हर गम मुझसे चुरा लेना,
नज़रअंदाज़ कर देना उन लकीरों को,
जो माथे पर बढ़ रही है तुम्हारे आहिस्ता- आहिस्ता,
हर कोई नहीं समझ सकता,
मेरा तुम्हारे साथ वो 'तुम' का रिश्ता।
वो तुम्हारी बुलेट पर हम तीनों भाई-बहन का आ जाना,
और उसकी फट-फट में ज़माने के शोर का कहीं गुम हो जाना,
चिड़ियाघर की या की बचपन की वो सैर,
जन्माष्टमी के मेलों में झूले का वो डर तुम्हारे बगैर,
और फिर मंदिर की राह में वो कस कर तुम्हारा हाथ थाम लेना,
भीड़ का काफिला देख तुम्हारा मुझको गोद में उठा लेना,
और मेरी खुशी का ठिकाना न होना,
फिर वो तीर-कमान की ज़िद पकड़ लेना,
तमाशे के भालू को देख मेरा तुम्हे कस के जकड़ लेना,
और तुम्हारा उस डर को भगा देना जो आँखों से था रिसता,
हर कोई नहीं समझ सकता,
मेरा तुम्हारे साथ वो 'तुम' का रिश्ता।
वो मेरा तुम्हारी वर्दी की टोपी को पहन लेना,
और तुम्हारा ये कहते हुए की तुम्हें इससे भी बड़ा बनना है,
उस टोपी को झट से उतार लेना,
वो तुम्हारी वर्दी में लगी सीटी को दिन रात बजाना,
और माँ के बताने पर कि उस सीटी की क्या अहमियत है,
मेरा उस सीटी को सलीके से तुमहारी वर्दी में लगा देना,
और अपनी बेवकूफी पर दिन-रात घबराना,
वो हर रोज़ तुम्हारी रवानगी का बाए,
और तब तक वहीं दहलीज़ पर ही खड़े रहना,
जब तक तुम्हारी गाड़ी नज़रों से ओझल न हो जाए,
शाम का रात और रात का सहर में बदलते रहना,
और हर रोज़ वापसी पर खिल जाना मेरी मूस्कुराहटों का गुलदस्ता,
हर कोई नहीं समझ सकता,
मेरा तुम्हारे साथ वो 'तुम' का रिश्ता।
वो तुम्हारी बाइक की डिग्गी पर नज़रें गड़ा के रखना,
और फिर छलकती हुई सारी खुशियाँ दो नन्ही बाहों में समेट कर,
तुम्हारे साथ ही घर की दहलीज़ में कदम रखना,
मस्ती में खोए हुए मेरा अटक कर फिसलना,
दामन से निकल कर चंद सपनों का हवा में उछलना,
और तुम्हारा हम दोनों को मुस्कराते हुए थाम लेना,
और वापस उन खुशियों को मुझे थमा देना,
ताकि हमेशा ही भरा रहे मेरी खिलखिलाहटों का बस्ता,
हर कोई नहीं समझ सकता,
मेरा तुम्हारे साथ वो 'तुम' का रिश्ता।
ज़िन्दगी की डगर कठिन और सफ़र लंबा है,
तुम्हारे काँधे पर बैठ मंज़िल हमेशा साफ़ नज़र आई,
मेरे नन्हे कद को ढक लेती थी तुम्हारी शख्सियत की परछाईं,
उससे महफूज़ कोई जगह न थी और,
समय काफी बीत गया है और अब बदला सा है दौर,
नई मंज़िले हैं ज़हन में और डगर मुश्किल हो गई है,
लेकिन इस रिश्ते की तासीर अब भी नई है,
संग तुम्हारे अब भी अपना है हर रस्ता,
हर कोई नहीं समझ सकता,
मेरा तुम्हारे साथ वो 'तुम' का रिश्ता।
ज़िन्दगी तुम्हारे होने से है खूबसूरत,
तुमसे कीमती, चाहे जितनी छोटी सही ज़िन्दगी ने कुछ न दिया,
चाहे कितनी भी बड़ी हो जाऊं मैं,
ज़िन्दगी भर मुझे रहेगी तुम्हारी ज़रूरत,
तुम्हारी ही रहेगी ज़िन्दगी में पहली और आखिरी हसरत,
हर कोई नहीं समझ सकता,
मेरा तुम्हारे साथ वो 'तुम' का रिश्ता,
वो 'तुम' का रिश्ता।
-प्रिंसी मिश्रा©
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