कुछ मेरा होगा, कुछ तुम्हारा होगा


कुछ मेरा कुछ तुम्हारा होगा,
किस्सा ये पुराना होगा,
जब वख्त की दहलीज पर,
मेरी यादों का आना होगा।
खट्टी-मीठी यादों का ताना-बाना होगा,
मुठ्ठी में बंद रेत सा है ये मंज़र,
कि अब न मेरा आना रोज़ाना होगा,
ख्वाहिशों के इन चश्मों में लौट तो आएँगी ये तस्वीरें,
पर ये चेहरा न जाना-पहचाना होगा।
इश्क की चाहत थी मुकम्मल होने की,
पर अब अधूरा ये फ़साना होगा,
कि वादों को अब,
अकेले ही निभाना होगा,
हम के आशिएँ को,
 मैं में बसाना होगा,
ख़ुद ही ख़ुद को हसाना होगा।
बस चुकी ज़िन्दगी से,
दगा वाज़िब नहीं,
ढल चुके अनचाहे,
रिश्तों को निभाना ही होगा,
कि इस चेहरे पर,
मुस्कुराहट को सजाना ही होगा,
जब टूट कर सताये याद मेरी,
 दिल को समझना ही होगा,
वक्त की दलीलों पर,
मजबूरियों का फैसला सुनाना ही होगा।
ज़िन्दगी महज़ ख्वाहिशों की चौखट नहीं,
ज़रूरतों के इस आंगन में,
गम को बिठाना ही होगा,
जब अकेले खुशियों का हुआ न ये हमारा दिल,
तो ज़िन्दगी की धूप में,
गम की इस ओस का भी ठहरना न होगा,
कल जब मुड़ कर देखोगे,
तब इन यादों का भीनी खुशबू सा गुज़रना होगा।
कुछ मेरा कुछ तुम्हारा होगा,
किस्सा ये पुराना होगा,
जब वख्त की दहलीज़ पर,
मेरी यादों का आना होगा।
      -प्रिंसी मिश्रा


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