राधे का श्याम कहाता हूँ











पनिहारी पानी से हारी
प्रेम की मटकी फूटी..
मना रहें हैं कृष्ण मुरारी,
राधा उनसे क्यों रूठी?
पूछे है राधा रुधिर भरे नैनों से,
लाद मुझे क्यों दिया विरह गहनों से?
मेरा श्रृंगार तुम्ही हो मोहन,
तुम बिन श्रृंगार है झूठा,
जीवन का ये खेल अनूठा।
तुम बिन भी तुम्हरी ही हूँ,
प्रेम है कितना कौन गत कहूँ?
हृदय द्वार खड़े नैन भरे पानी से,
डरती हूँ बह न जाये समग्र संसार,
टूट गया जो बाँध,
तेरी प्रेम बाँसुरी की बानी से।
पर फिर,विरह ये सह लेती हूँ,
हृदय राग ये कह लेती हूँ,
ज्ञात मुझे है तू मेरा है,
ये तो बस नियति का फेरा है।
राधा मन श्याम बसे हैं,
हृदय कोकिल बन ,
होंठों पर नित घनश्याम हँसे हैं।
सुन रे राधिके ,सब है ज्ञात तुम्हे,
फिर ये कैसा अज्ञात तुम्हे?
जग में राधे-श्याम कहाता हूँ,
नित लोचन में स्वयं से पहले,
तुम्हरे लोचन में स्वयं मैं जग जाता हूँ।
और जगत में कृष्ण से ज्यादा,
राधे का श्याम कहाता हूँ।
राधे का श्याम कहाता हूँ।
    -प्रिंसी मिश्रा

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