उम्र

बूढ़ी आँखों में आँखे डाल के देखो कभी,
अजीब सी शान्ति है इनमे,....
इन्हे ज़िन्दगी का तज़ुर्बा है।

डगमगाते कदमो पर न जाओ इनके,
बड़ा लंबा सफर तय किया है इन्होंने,....
थकान तो लाज़मी है।

लड़खड़ाती ज़ुबान पर न जाओ इनकी ,
ख़याल तो आज भी आपसे कही तेज़ दौड़ते हैं इनके,.....
सब्र तो सुनने का हमने खो दिया है ।

हिलते हाथों पर न जाओ इनके,
बहूत बोझ ढोया है सारी उम्र इन्होंने,...........
यूँ ही नहीं अब  लकीरें मिट चलीं हैं।

उम्र का ताना इन्हें ये सोच कर देना,
की ये वही माँ- बाप हैं जिन्होंने एक उम्र गँवा कर तुम्हें ज़िन्दगी दी है।
          -प्रिंसी मिश्रा

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