माँ

नैनों का दर्पण देखों,
आँखों से ओझल सपने,
दे दिए तुझको सारे ,
नैनों के जुगनू अपने।

ख्वाहिशों की बंजर धरती,
तेरे सिवा कुछ नहीं चाहती है।
प्यार की परछाई ये,
रुकावटों की एक नहीं मानती है।
बस एक तेरी खुशियों के ही,
बीज सारे बोती है।

कोशिशों की चाल ये,
रुकना नहीं जानती है।
मुश्किलों के इस समंदर में,
तेरा कौन माँझी,
बस एक तेरी रूह ,
दूजा तेरी माँ तुझे पहचानती है।

ज़िन्दगी की रंगत सारी,
यारों की संगत -यारी,
दुनिया की दुनियादारी,
परखा सबको बारी-बारी,
कोई तुझसा पाया नहीं ।
पास जो तू न हो,
साथ मेरे मेरा साया नहीं।

आंगन की तुलसी मेरे,
घर की ये चौखट मेरी,
मंदिर के भगवन मेरे,
जागते हैं जगने से तेरे।

घर का ये चूल्हा मेरा,
उसमे रहती आग जितनी,
बगिया के फूल सारे,
घर के ये कोने सारे,
खाँची के बर्तन सारे,
घर की ये सारी माटी,
सब तुझे जानते हैं,
बस एक तेरी बात मानते हैं,
हम जो छू ले इनको,
ज़िद ऐसी ठानते हैं।

ये जो तू गुनगुनाती है,
कानों में मिश्री सी घुल जाती है,
सारे इसे पहचानते हैं,
है ये तेरी लोरी ,
बात ये भी जानते हैं,

सुन के ये लोरी तेरी,
घर ये सो जाता है,
तुझको सुलाने को माँ ,
कौन लोरी गाता है?

घर के हैं शीशे जितने,
सब में तेरा अक्स है,
तुझसा प्यारा माँ,
न यहाँ कोई शख्स है।

कितनी मीठी माँ,
ये तेरी बोली है,
तुझसे ही तो यहाँ,
हर फागुन होली है।

लाल तेरी बिंदिया देखो,
लाल माथे रोली है,
सूरत ये तेरी माँ,
कितनी सलोनी है।

तेरी मुस्कराहट देखो,
घर की खुशहाली है,
तेरी आँखों के मोती,
घर का उजाला हैं,
माँ अमृत तेरे
हाथ का हर निवाला है,
गोद में तेरी माँ,
जीवन ये बिताना है।
तुझसे है जो निश्चल बंधन,
उसको निभाना है।
कि तू है सबकुछ मेरा,
तुझको बताना है।
तेरी उंगली पकड़ के माँ,
बस चलते जाना है।
बाकी जहाँ ये,
सारा अनजाना है,
माँ ...जहाँ ये अनजाना है।
        
         -प्रिंसी मिश्रा

Comments

Post a Comment