सरहद

युद्ध के नाद से दहलती रूह को संभाले,
सन्नाटा यहाँ शोर का प्रहरी है,
क़दमों की ताब में अंधेरों को दबा के रखा है,
तुझे मालूम नहीं की यहाँ हर रात कितनी गहरी है।

यहाँ वीरता त्याग से बाते करती है।
चंद लम्हों की ज़िन्दगी यहाँ अमर गाथाएँ गढ़ती है,
जिनके अमिट स्मारकों पर,
धरती यहाँ कभी विलाप तो कभी गर्व करती है।
कि मेरी ज़ुबान ,
आज सरहद की लिखी किताब पढ़ती है।
कि दिल को ज़रा थाम के बैठना,
यहाँ कई पन्नों की स्याही लाल दिखाई पड़ती है।
हर पन्ने पर यहाँ,
कितनी ही गुमनाम रूहें टहलती हैं,
जो आज भी अपनी कहानी आप ही पढ़ती हैं।
कई शहीदों का घर तो लोगों की यादों में बस गया,
कुछ और लोगों की भी कहानियाँ है यहाँ,
जो आज भी शब्दों में,
हर पढ़ने वाले से अपनी पहचान की गुहार करती हैं।
सरहद की बदकिस्मती है या लोगों की,
ये किसी पर रेहम नहीं करती है।
हर वक्त हर समय ये बंजर ही रहती है,
हरियाली,और फूलों की रंगत तो एक छलावा है,
देखने को आँखों में आँसू और ज़हन में खौफ ,
नहीं यहाँ कुछ इसके अलावा है,
इसके मंज़र कितने बेरहम हैं,
इस किताब ने बताया है।

सरहद का मज़हब कौंन बता पाया है,
युद्ध उसकी तपस्या है,
शांति को उसके फल में पाया है,
एक सैनिक इसकी मिटटी को घर ले आया है,
उसे मंदिर में बिठाया है,
सरहद को मंदिर ,
और उसकी सुरक्षा को पूजा बताया है।

अरे रुको,
अभी और पन्ने बाकी हैं,
तुम्ही ने कहा था की देखे आज ,की क्यों हर आवाज़ सरहद की ही बात करती है।
इस जमीन ने बहुतों को नींद का बिस्तर दिया है,
वतन के कितने घरों से ईट ली है,
तब जाके इसे सुरक्षित किया है।
कुछ पन्नों पर मुझे मुस्कान दौड़ती दिखी ,
कुछ से बूढी आँखे झाँक रहीं थी,
कुछ से किसी की बिंदिया ताक रही थी,
तो कुछ पर,
नन्हे क़दमों से कुछ यादें दुनिया नाप रहीं थी।
लगता है,
लिखने वाले की उँगलियाँ काँप रही थी।
केई पन्ने हैं,
जिन पर है किसी के सपनों की कहानी लिखी।
कुछ पन्ने हैं जिनपर हैं कुछ यादों के किले,
कही-कही तो मुझे ज़रूरतों के शमशान भी मिले।
हर पन्ने पर मुझे घायल इंसान ही मिले।
बहुत कुछ मिला,
गर नहीं मिला तो ,
इन पन्नों में शामिल होने का पछतावा,
उन खतों का जवाब जिनमे था घर लौट आने का बुलावा।
न ही मिला,
मुझे इनमे नफरत का मकान,
हर पन्ने पर मिला एक सच्चा इंसान,जो मुझे अगले पन्ने तक ले गया,
कि कहीं मैं इनमे खो न जाऊँ,
मेरी भी ज़िम्मेदारी हो गयी,
कि इन पन्नो की यादों से थोड़ी अपनी कलम भीगा लूँ,
थोड़ा सा इस सरहद का चन्दन मैं भी लगा लूँ।
कि सरहद है वजूद शान्ति का,
जंग में अक्सर सीमायें नहीं होती,
जो होतीं तो जंग ही क्यों होती?
न इस पार कोई शहादत होती ,
न उस पार आंसुओं की पलकों से बगावत होती।
न हर बार किसी सरहद की मिट्टी रोती,
शायद एक रात सरहद भी चैन की नींद सोती।
             सरहद भी चैन की नींद सोती।।
                            - प्रिंसी मिश्रा















Comments

  1. just awesome... you are sooo talented.. अत्यंत मार्मिक रचना...

    ReplyDelete

Post a Comment